Book Your Kumbh Vivah
कुंभ विवाह क्या है?
कुंभ विवाह तब किया जाता है जब कन्या की जन्म कुंडली में मंगल दोष के कारण ग्रह योग या विधवा योग बनता है। इस योग का जन्म संबंधित कन्या की जन्म कुंडली में होता है। यदि ऐसी कन्या कुम्भ विवाह किए बिना ही किसी वर से विवाह कर लेती है, तो वह विधवा हो सकती है और उसके वैवाहिक जीवन में दिक्कतें और परेशानियां हो सकती हैं।
कुंभ विवाह की प्रक्रिया
इस रस्म में, पहले कन्या का विवाह मिट्टी के बर्तन में स्थापित भगवान विष्णु की मूर्ति के साथ किया जाता है। यह शादी सामान्य तरीके से की जाती है। इसमें दुल्हन का कन्यादान माता-पिता द्वारा किया जाता है। पूरे विवाह समारोह के बाद, भगवान विष्णु की मूर्ति को जलाशय में विसर्जित कर दिया जाता है। इस प्रकार कुंभ (विवाह) विवाह समारोह संपन्न होता है।
कुंभ एवं अर्क विवाह की आवश्यकता
मंगल दोष को हमारे कुंडली के दोषों में एक प्रमुख दोष माना जाता है। आजकल के शादी-ब्याह में इसकी प्रमुखता देखी जा रही है। ऐसा माना जाता है कि मांगलिक दोषयुक्त कुंडली का मिलान मांगलिक-दोषयुक्त कुंडली से ही करना चाहिए। लेकिन यह कुछ मायनों में गलत है। कई बार ऐसा करने से यह दोष दुगना हो जाता है, जिससे वर-वधु का जीवन कष्टमय हो जाता है।
हालांकि, अगर वर-वधु की आयु ३० वर्ष से अधिक हो, या जिस स्थान पर वर या वधु का मंगल स्थित हो, उसी स्थान पर दूसरे की कुंडली में शनि, राहु, केतु या सूर्य हो, तो भी मंगल-दोष विचारणीय नहीं रह जाता। अगर दूसरी कुंडली मंगल-दोषयुक्त न भी हो, तो भी वर-वधु के गुण-मिलान में गुणों की संख्या ३० से ऊपर आती है तो भी मंगल-दोष विचारणीय नहीं रह जाता।
परन्तु, अगर यह सब किसी की कुंडली में नहीं है, तो नव दम्पति के सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए कन्या एवं वर का कुंभ एवं अर्क विवाह करवाना अनिवार्य सा बन जाता है।